
बस्तर में ₹49,000 करोड़ का बांध, लेकिन किस कीमत पर?
संवादगढ़ विशेष रिपोर्ट | दंतेवाड़ा, छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल ही में बस्तर के लिए ₹49,000 करोड़ की सिंचाई और जलविद्युत परियोजनाओं का एलान किया। मुख्यमंत्री ने इसे “ऐतिहासिक पहल” बताया, लेकिन यह ‘विकास’ आदिवासियों के विस्थापन और जंगलों के विनाश की कीमत पर लिखा जा रहा है।
बोधघाट परियोजना: बांध या बलिदान?
दावे:
- 3.66 लाख हेक्टेयर सिंचाई
- 300 मेगावाट बिजली
- 49 MCM पीने का पानी
- हज़ारों नौकरियाँ
हकीकत:
- 25,000+ आदिवासी विस्थापित
- 5,000+ हेक्टेयर जंगल डूबने की आशंका
- 40+ गाँव पूरी तरह जलमग्न
यह कोई ‘हरित परियोजना’ नहीं, यह संस्कृति, आजीविका और पारिस्थितिकी पर हमला है।
बिना सहमति का विकास
- ग्राम सभा की मंज़ूरी नहीं ली गई – पेसा और FRA के प्रावधानों की अवहेलना।
- EIA-SIA रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं – पर्यावरण और सामाजिक प्रभाव की कोई पारदर्शिता नहीं।
- 2021 के विरोध प्रदर्शन दबा दिए गए – बारसूर, गुमलनार जैसे गांवों की आवाज़ें अनसुनी रहीं।
किसके लिए विकास?
पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस परियोजना को “असंभव और अव्यवहारिक” कहा था।
फिर भी यह राजनीतिक लाभ और कॉर्पोरेट लॉबी के दबाव में आगे बढ़ रही है।
क्या यह परियोजना वास्तव में पानी देगी, या फिर केवल सत्ता को वोट और कंपनियों को ठेके?
यह सिर्फ़ एक बांध नहीं…
यह छत्तीसगढ़ की आत्मा को बांधने की कोशिश है।
संवादगढ़ पूछता है:
क्या आदिवासी ज़मीनें हर बार ‘राष्ट्रीय हित’ के नाम पर कुर्बान होंगी?
क्या ‘विकास’ अब जल-जंगल-जमीन का कॉर्पोरेट सौदा बन चुका है?
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