
महिला दिवस पर जब अधिकांश कंपनियाँ केवल औपचारिक संदेश और प्रचार वीडियो तक सीमित रहीं, वेदांता समूह ने एक ऐसी तस्वीर पेश की जो भारत की खनन इंडस्ट्री में नया अध्याय खोलती है। कंपनी का दावा है कि उनके पास देश की सबसे बड़ी महिला अंडरग्राउंड खनन टीम है – एक ऐसा दावा जो पारंपरिक पुरुष प्रधान इस क्षेत्र में एक बड़ा कदम माना जा सकता है।
🚨 पहला कदम, बड़ी उम्मीद
वेदांता और उसकी सब्सिडियरी हिंदुस्तान ज़िंक ने 2019 में पहली बार महिलाओं को भूमिगत खनन भूमिकाओं में शामिल किया था। आज, कंपनी कहती है कि उनके पास 550 से अधिक महिलाएं मुख्य खनन कार्यों में लगी हैं – जो भारत में किसी भी निजी कंपनी के मुकाबले सबसे अधिक है।
⚙️ तकनीक और नीतियों का सहारा
महिलाओं को खनन कार्यों में प्रभावी बनाने के लिए कंपनी ने Industry 4.0 टेक्नोलॉजी जैसे ऑटोमेशन, रिमोट कंट्रोल्ड मशीनरी और रोबोटिक्स को अपनाया है, जिससे भारी कार्यों का बोझ कम हुआ है।
इसके साथ-साथ, वेदांता ने कुछ महिला‑अनुकूल नीतियाँ लागू की हैं:
- स्पाउस हायरिंग पॉलिसी
- बाल देखभाल के लिए सालभर की छुट्टी
- ‘नो क्वेश्चन’ लीव पॉलिसी
- महिला-प्रेरित आवासीय सुविधाओं के साथ स्कूल, डे‑केयर, हॉस्पिटल और खेल सुविधाएँ
🔦 महिला नेतृत्व और ज़मीन से आवाज़
राजस्थान के ज़ावर खदानों की संध्या रसकटला, जो भारत की पहली महिला अंडरग्राउंड माइन मैनेजर बनीं, ने कहा कि उन्हें पुरुषों के समान अवसर और समर्थन मिला।
वहीं गोवा की योगेश्वरी राणे, जिन्होंने देश की सबसे कठिन माइनिंग परीक्षाओं में टॉप किया, बताती हैं कि वेदांता में उन्हें अंडरग्राउंड और ओपनकास्ट दोनों में अनुभव मिला — जो कई कंपनियों में दुर्लभ है।
📈 आंकड़ों से समझिए
पहल | विवरण |
---|---|
कुल महिला कर्मचारी | ~3,000 |
खनन में महिला | 550+ (मुख्य खनन कार्यों में) |
महिला प्रतिनिधित्व लक्ष्य | 30% तक (FY 2030 तक) |
भारत की पहली उपलब्धियाँ | महिला अंडरग्राउंड माइनर, माइन रेस्क्यू टीमें, लोकोमोटिव यूनिट |
🔍 संवादगढ़ की नजर से
कंपनी के ये प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन कुछ अहम सवाल अब भी हवा में हैं:
- क्या यह बदलाव स्थायी है या सिर्फ पीआर स्टंट?
- क्या इन महिलाओं को भविष्य में नेतृत्व भूमिकाओं में भी जगह दी जा रही है?
- क्या यह मॉडल अन्य निजी और सरकारी कंपनियों के लिए उदाहरण बनेगा?
वेदांता की इस पहल को भारत की खनन इंडस्ट्री में महिला भागीदारी बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा और साहसिक कदम माना जा सकता है। लेकिन असली बदलाव तब होगा जब यह मॉडल महज इक्का-दुक्का कंपनियों तक सीमित न रहकर पूरे क्षेत्र में व्यवस्था का हिस्सा बने।
क्या भारत की खनन नीति इस दिशा में बदलाव को तैयार है? या फिर यह कहानी भी कुछ तस्वीरों और बयानों तक ही सिमट जाएगी?
अंग्रेजी में भी पढ़ें: https://sanvaadgarh.in/indias-mining-sector-gets-a-feminist-facelift-vedantas-claim-or-a-catalyst-for-change/
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