प्रतिबंध सिर्फ़ नाम का? झारखंड में प्लास्टिक वापसी की गूंज

संवादगढ़ ग्राउंड रिपोर्ट | रांची, धनबाद, गढ़वा

2025 के विश्व पर्यावरण दिवस पर झारखंड सरकार ने सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध को और सख्त करने की घोषणा की। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसे “हरित झारखंड की ओर निर्णायक कदम” बताया। लेकिन संवादगढ़ की जमीनी पड़ताल से पता चला है कि यह प्रतिबंध केवल कागज़ पर है, जबकि ज़मीनी हकीकत इसके विपरीत है।

हर गली में प्लास्टिक का राज

  • रांची: सब्ज़ी बाज़ारों और मीट दुकानों में पॉलीबैग का खुलेआम उपयोग जारी है। एक दुकानदार ने कहा, “सरकार ने नोटिस भेजा, लेकिन कोई जाँच करने नहीं आया।”
  • धनबाद: अस्पतालों के मेडिकल कचरे में सिंगल-यूज़ प्लास्टिक की भरमार है।
  • गढ़वा: ग्रामीण क्षेत्रों में न तो प्रतिबंध की सूचना पहुँची, न ही कोई जागरूकता अभियान चलाया गया।

वन्यजीव और जल स्रोत पर असर

  • दामोदर और स्वर्णरेखा नदियों में पॉलीथीन कचरे का जमाव बढ़ रहा है।
  • रिपोर्ट्स के अनुसार, हजारीबाग वाइल्डलाइफ सेंचुरी के पास प्लास्टिक में फंसे मृत पशु पाए गए हैं।
  • संवादगढ़ ने दामोदर नदी के पानी के सैंपलों का परीक्षण किया, जिसमें माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी पाई गई।

संवादगढ़ की मांग

  • प्लास्टिक प्रतिबंध के लिए प्रत्येक जिले में स्थानीय कार्य योजना (LAP) सार्वजनिक की जाए।
  • झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (JSPCB) को प्रत्येक जिले का मासिक कार्रवाई डेटा जारी करना चाहिए।
  • CSR और DMF से संचालित सभी अभियानों का वित्तीय विवरण और परिणाम सार्वजनिक किया जाए।
  • प्लास्टिक सप्लाई चेन में शामिल व्यापारियों पर कठोर कार्रवाई की जाए।

हरित घोषणाएँ बहुत हो चुकी हैं। अब समय है धरातल पर सख्ती दिखाने का।

संवादगढ़ पूछता है

प्लास्टिक पर सरकार की घोषणाओं का क्या मूल्य है, जब दुकानों से लेकर अस्पतालों तक में हर दिन कानून का उल्लंघन हो रहा है?

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