कोरबा की हवा में ज़हर, सांसें उधार पर — एक खामोश स्वास्थ्य आपातकाल

कोरबा (छत्तीसगढ़)।

देश के ऊर्जा उत्पादन में अहम भूमिका निभाने वाला कोरबा जिला गंभीर स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है। एनटीपीसी, बालको और एसईसीएल जैसी कंपनियाँ सीएसआर रिपोर्ट्स में विकास का दावा करती हैं, लेकिन वास्तविकता दमघोंटू पर्यावरण और बीमार आबादी की है।

वायु गुणवत्ता: सांस लेना जानलेवा

कोरबा में पीएम2.5 की मात्रा कई मौकों पर 1600 μg/m³ तक पहुँच चुकी है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की अधिकतम सुरक्षित सीमा (15 μg/m³) से लगभग 100 गुना अधिक है।
यह आंकड़ा कोई अपवाद नहीं, बल्कि कोरबा के कई औद्योगिक इलाकों विशेषकर गेवरा, दीपका और कुसमुंडा में एक नियमित स्थिति है।

बीमार फेफड़े, टूटती सांसें

राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र (CGSHRC) और अन्य संस्थाओं की रिपोर्ट्स के अनुसार:

  • कोल बेल्ट क्षेत्र में अस्थमा पीड़ितों की दर 11.8% है
  • ब्रोंकाइटिस के मामले 3% से ऊपर
  • कोरबा के नागरिकों की औसतन जीवन प्रत्याशा 4.9 वर्ष कम हो चुकी है

उद्योगों की भूमिका और सीएसआर की सच्चाई

एनटीपीसी, बालको और एसईसीएल की सीएसआर रिपोर्ट्स में वृक्षारोपण, नि:शुल्क चिकित्सा शिविर और छात्रवृत्तियों की बातें ज़रूर मिलती हैं।
लेकिन धूल, फ्लाई ऐश और विषैली गैसों से ग्रस्त इलाकों में आज भी कोई स्थायी फेफड़ा रोग केंद्र या मोबाइल क्लिनिक नहीं है।
ना ही कोई विस्तृत ‘हेल्थ इम्पैक्ट एसेसमेंट’ सार्वजनिक किया गया है।

हकीकत बनाम प्रचार

उद्योगों का दावाजमीनी हकीकत
लाखों पौधे लगाए गएपेड़ उगे नहीं, राख ने ढँक दिया
स्वास्थ्य शिविर आयोजितकोई निरंतर इलाज नहीं
पर्यावरण संरक्षण में निवेशहवा आज भी ज़हर से भारी

प्रश्न जिनका जवाब कोई नहीं देता

  • क्या कंपनियाँ स्वास्थ्य बीमा या मुआवज़ा देती हैं इन बीमार परिवारों को?
  • क्या कोरबा के लिए कभी किसी उद्योग ने श्वसन रोग अस्पताल की घोषणा की?
  • क्या ज़हरीली राख के खुले डैम कभी बंद होंगे?

संवादगढ़ की मांग:

कोरबा अब सिर्फ सवाल नहीं पूछता, वह हिसाब मांगता है।

  • उद्योगों को स्वास्थ्य पुनर्वास योजना लागू करनी चाहिए
  • सरकारी एजेंसियों को स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करना चाहिए
  • और हर उस सांस का हिसाब देना होगा जो कोरबा ने धुएँ में गँवा दी

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