By The SanvaadGarh Newsroom
कोरबा/सरगुजा, छत्तीसगढ़ — मध्य भारत के हरे दिल हसदेव अरण्य में “विकास” के नाम पर जो कुछ चल रहा है, वह असल में हरियाली का हत्या है। यह जंगल — जो आदिवासी समुदायों की आजीविका, संस्कृति और प्रकृति का प्रतीक है — आज खनन मशीनों और सरकारी मौन की चक्की में पिस रहा है।
PEKB (परसा ईस्ट केंते बासन) कोल ब्लॉक, जिसे राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित किया गया है, और जिसे अडाणी एंटरप्राइजेजसंचालित कर रही है, इस पूरे विनाश के केंद्र में है।
जंगल छत्तीसगढ़ का, लेकिन कोयला राजस्थान को। जंगलवासी उजड़े, और बाहर बैठा उद्योगपतियों का समूह समृद्ध।
🔴 आंकड़े जो आपको झकझोर देंगे:
- 🌲 95,000 से अधिक पेड़ अब तक काटे जा चुके हैं
- ✂️ 2,73,000 और पेड़ काटने की मंजूरी दी जा चुकी है
- 📍 प्रभावित क्षेत्र: 1,136 हेक्टेयर से अधिक
- 🏞️ यह पूरा इलाका 1,880 वर्ग किमी के हसदेव अरण्य का हिस्सा है, जहाँ हाथी, बाघ, दुर्लभ पौधे और आदिवासी संस्कृति पनपती है
👣 आदिवासी हाशिए पर, विरोध कुचला गया
स्थानीय गोंड व ओरांव समुदायों ने ग्राम सभाओं में विरोध पारित किया, शांतिपूर्ण धरने दिए, लेकिन उनकी आवाज़ को जबरन दबा दिया गया।
हजारों ग्रामीणों की बिना सहमति के, जंगलों को कटवाने की मंजूरी दी गई।
“हमने कभी सहमति नहीं दी थी। जंगल ही हमारी जान है। अब सरकार और कंपनियाँ हमारी जड़ें उखाड़ रही हैं।” — हरिहरपुर की एक आदिवासी महिला
⚖️ पर्यावरण मंजूरी या कॉर्पोरेट डील?
2010 में इसी क्षेत्र को “नो-गो जोन” घोषित किया गया था यानी यहाँ खनन नहीं हो सकता था। लेकिन फिर अचानक यह ‘ग्रीन सिग्नल’ कैसे बन गया?
क्या जंगल से बड़ा है अडाणी का ठेका?
जब देश में पहले ही कोयला अधिशेष (surplus) है, तब हजारों हेक्टेयर जंगल काटने की यह हड़बड़ी किसके लिए?
🌍 इसके नुकसान सिर्फ लोकल नहीं — ग्लोबल हैं
- ये जंगल हसदेव नदी की जीवनरेखा हैं
- ये क्षेत्र कार्बन सिंक की तरह काम करता है, जो जलवायु परिवर्तन से लड़ता है
- यह वन्यजीवों का गलियारा है — खासकर हाथियों के लिए
❗ ये विकास नहीं, संसाधनों की लूट है
यह सिर्फ जंगल का कटाव नहीं है — यह संविधानिक अधिकारों की अनदेखी, प्राकृतिक संतुलन की हत्या, और आदिवासियों की जड़ों से बेदखलीहै।
सरकारें चुप हैं। मीडिया मौन है। लेकिन जमीन खामोश नहीं है — वह खून रो रही है।

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