
संवादगढ़ विशेष रिपोर्ट | रायपुर
“छत्तीसगढ़ हाइड्रोजन ट्रक से हरा होगा,” सुर्खियां बटोर रही हैं, पर क्या यह वाकई हरित विकास है या कॉर्पोरेट-सरकारी मिलीभगत का हरित दिखावा, जो जंगल, ज़मीन और ज़िंदगियां निगल रहा है?
हाइड्रोजन ट्रक: हरियाली की आड़ में कोयला ढुलाई
हालिया रिपोर्ट्स में छत्तीसगढ़ में हाइड्रोजन-ईंधन ट्रकों की चर्चा है, जिन्हें ‘हरित लॉजिस्टिक’ की क्रांति बताया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, ये ट्रक कोयला ढोने के लिए प्रस्तावित हैं, जो डीज़ल की जगह हाइड्रोजन का उपयोग करेंगे। मगर सवाल उठता है: कोयला खनन और जलाने से हर साल ~2.1 टन CO2 प्रति टन कोयले का उत्सर्जन होता है। क्या हाइड्रोजन ट्रक वाकई हरित हैं, अगर उनका मकसद कोयले की ढुलाई है? हाइड्रोजन उत्पादन की प्रक्रिया—जो अक्सर जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है—इस ‘हरित’ दावे पर और सवाल उठाती है।
हसदेव का विनाश, चुप्पी क्यों?
हसदेव अरण्य, छत्तीसगढ़ का हरित हृदय, कोयला खदानों के लिए तेजी से कट रहा है। परसा ईस्ट और कांटा बासन (PEKB) खदान के लिए 1,00,000 से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं, और 2,50,000 पेड़ों पर खतरा मंडरा रहा है। आदिवासी समुदाय, जिनमें लगभग 700 लोग परसा ब्लॉक से विस्थापित हुए, विरोध कर रहे हैं, मगर पुलिस सुरक्षा में पेड़ कटाई जारी है। अडानी एंटरप्राइजेज, जो PEKB का संचालन करती है, दावा करती है कि CSR के तहत वृक्षारोपण हो रहा है, पर नए रोपण पुराने जंगलों की जैव-विविधता की भरपाई नहीं कर सकते। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नए कोयला खानों को ‘गैर-आवश्यक’ बताया, फिर भी खनन जारी है। यह दोहरा रवैया क्यों?
रेत खनन पर दिखावटी कार्रवाई
छत्तीसगढ़ में अवैध रेत खनन नदियों और पर्यावरण को नष्ट कर रहा है। खनन विभाग ने हाल के वर्षों में ‘सख्ती’ के आदेश दिए, पर कार्रवाई छोटे संचालकों तक सीमित रही। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की पुरानी रिपोर्ट्स बताती हैं कि बड़े ठेकेदार और माफिया, जिनके पीछे राजनेता और उद्योगपति हैं, खुले आम रेत खनन करते हैं। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, यह सिलसिला 2025 में भी जारी है। नदियों की तबाही और पानी की कमी के बावजूद बड़े माफिया पर कार्रवाई क्यों नहीं?
कोरबा-रायगढ़: बीमार जनता, गायब डेटा
कोरबा, ‘पावर कैपिटल’, अब गैस चैंबर बन चुका है। कोयला संयंत्रों और खदानों से PM2.5 का स्तर WHO मानक (5 µg/m³) से कई गुना ऊपर, अक्सर 60–100 µg/m³ तक पहुंचता है। स्थानीय समुदायों में दमा और कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, खासकर बच्चों में। फिर भी, स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट्स स्थिति को ‘सामान्य’ दिखाती हैं। डेटा की कमी और पारदर्शिता का अभाव सवाल उठाता है: क्या सरकार जनता के स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर रही है?
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड: मूक या सह-अपराधी?
संवादगढ़ की जांच में खुलासा हुआ कि कई औद्योगिक इकाइयां बिना अपशिष्ट उपचार संयंत्रों के प्रदूषण फैला रही हैं, फिर भी छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल (CECB) से क्लीन चिट पा रही हैं। क्या बोर्ड कॉर्पोरेट दबाव में काम कर रहा है? पारदर्शी जांच और जवाबदेही की कमी पर्यावरण संरक्षण को कमजोर कर रही है।
संवादगढ़ की मांग:
- हसदेव और अन्य जंगलों में खनन पर तत्काल रोक।
- CSR की हरित धोखाधड़ी की स्वतंत्र जांच।
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जवाबदेही तय हो।
- सरकारी-उद्योगपति गठजोड़ की CAG, ECI से जांच।
- स्वास्थ्य और पर्यावरण डेटा सार्वजनिक हो।
संवादगढ़ सिर्फ खबर नहीं, सच की लड़ाई है। हर पेड़, नदी और विस्थापित की आवाज़ के लिए हम आपके साथ हैं।
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