
7 जुलाई 2025 – एक दिन, दो नेता, दो भाषण – लेकिन जनता का सवाल अब भी अनसुना।
एक तरफ मैनपाट की पहाड़ियों में बीजेपी का ‘क्लोज़-डोर’ शक्ति प्रदर्शन।
दूसरी तरफ रायपुर के मैदान से कांग्रेस का ‘संविधान बचाओ’ आह्वान।
लेकिन इस सियासी तमाशे में ग़ायब हैं वो आवाज़ें, जो राख में दम तोड़ रही हैं, जो जल-जंगल-ज़मीन के लिए लड़ी जा रही हैं।
मैनपाट: सत्ता के साधु या रणनीति के शातिर?

“मोबाइल जमा करिए, प्रचार से दूर रहिए, और पार्टी के ‘संस्कार’ सीखिए।” यही था बीजेपी के नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर का आदेश।
- बीजेपी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के नेतृत्व में तीन दिन का प्रशिक्षण
- सीएम विष्णुदेव साय, शिवराज चौहान, धर्मेंद्र प्रधान समेत तमाम नेता मौजूद
- मुद्दे: अनुशासन, मीडिया मैनेजमेंट, योजनाओं की पैकेजिंग
लेकिन सवाल ये है:
जिस मैनपाट की आदिवासी आबादी को स्कूल, स्वास्थ्य और पानी नहीं मिला, उसी धरती पर क्या सिर्फ़ सत्ता की रणनीति गढ़ी जाएगी?
रायपुर: खड़गे की हुंकार या खोखला प्रतिरोध?

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा:
“बीजेपी सरकार नागपुर से चलती है। सीएम केवल मुखौटा हैं।”
“आदिवासी अधिकारों की बलि चढ़ाई जा रही है। कॉरपोरेट भूख के लिए ज़मीन छीनी जा रही है।”
जनसभा में किसानों, जवानों और संविधान की दुहाई दी गई।
चार महीने की “जनसंपर्क योजना” का ऐलान हुआ।
लेकिन सवाल ये है:
क्या कांग्रेस कभी कोरबा, हसदेव, या बस्तर की लूट पर जवाबदेह रही है?
क्या सिर्फ़ भाषणों से जनता का विश्वास लौटेगा?
जमीन पर हकीकत: जनता पूछ रही है…
सवाल | जवाब |
---|---|
हसदेव के जंगल बचे? | नहीं |
BALCO का प्रदूषण रुका? | नहीं |
DMF फंड का घोटाला रोका? | नहीं |
नौकरियों के वादे कहाँ हैं? | काग़ज़ों में |
आदिवासी स्वामित्व कहाँ है? | MoU में ग़ायब |
मैनपाट और रायपुर की रैली में एक भी स्थानीय आदिवासी आंदोलनकारी मंच पर नहीं था।
संवादगढ़ की सख़्त माँगें:
- सभी MoU सार्वजनिक हों — कितनी ज़मीन किसे दी गई?
- ग्रामसभा की अनिवार्य सहमति — बिना आदिवासी रज़ामंदी कोई परियोजना नहीं
- BALCO, SECL, और DMF घोटालों पर जन-जांच आयोग
- राज्य स्तर पर आदिवासी अधिकार विधेयक पास हो
- प्रदूषण, विस्थापन और स्वास्थ्य पर रियल-टाइम रिपोर्टिंग सिस्टम लागू हो
यह चुनाव नहीं – जनता की अस्मिता का युद्ध है।
- बीजेपी ब्रांडिंग में व्यस्त है।
- कांग्रेस खोखले नारे दोहरा रही है।
- जनता के हिस्से सिर्फ़ राख, विस्थापन और झूठे वादे आ रहे हैं।
संविधान बचाना है? पहले गाँव की ज़मीन, नदी, जंगल और साँस बचाओ।
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